शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

आरंग , भानसोज की पुष्पा साहू ..........

आरंग , भानसोज की पुष्पा साहू ..........
              हम किसी काम से भानसोज गए थे . वहां भीड़ में भी एक अलग सा चेहरा हमे नजर आया . सावली सी सूरत और लम्बा छरहरा बदन ........आवाज में तेज , आँखों में चमक ......... नाम पूछने पर पता लगा , ये पुष्पा साहू है ..... पुष्पा की कहानी उसी की जुबानी ...........
            
 मेरा नाम पुष्पा है. मेरा जन्म १ अगस्त १९६४ को ग्राम देवर तिल्दा में हुआ था .पिता सेवाराम साहू ,माँ फूलमत साहू , मेरा परिवार आम गाँव के परिवार जैसा ही था . सन १९६९ में प्रायमरी में मुझे स्कुल में भर्ती कराया गया ..तब से स्कुल के खेल कूद में भाग लिया और हमेशा प्रथम आती रही , पुरुस्कार मिलता तो मेरा उत्साह दुगुना हो जाता ...पांचवी प्रथम श्रेणी में पास किया . कनकी में से आठंवी तक की पढाई पूरी की ' उस समय सायकिल से स्कुल जाती थी ! गाँव और परिवार के लिए इतनी पढाई काफी थी , इसलिए मेरी शादी जनकराम साहू से २८ जून १९८१ ने कर दी गई ! एक लड़की और दो लड़का है .  पति  साउंड सर्विस का मामूली सा बिजनेस और खेती किसानी करते थे !

 आर्थिक तंगी के चलते बच्चो को अच्छी शिक्षा देना मुश्किल लग रहा था !गाँव के स्कुल में चपरासी के पद के लिए मैंने भी फार्म भरा .पर ससुराल वाले और मेरे पति ने मना  कर दिया . मै भी मन मसोस कर रह गई ! पर मन में कही न कही ये इच्छा थी कि कुछ ऐसा जरुर करू जिस से मेरी स्वयं की निजी पहिचान बन सके ! खेती किसानी में पति का सहयोग करने के अलावा मै कुछ ऐसा करना चाहती थी जिस से मुझे मेरे नाम से पहचान मिल सके ....

             मैंने सुना महिलाओ के लिए स्वयं सहायता समूह की योजना बैंक के द्वारा चलाई जा रही है .. सहकारी बैंक के कुछ अधिकारियो से मै जाकर मिली  , उनसे इस योजना की जानकारी ली .  ये सन २००० की बात है , मैंने अपने घर में ही भान्सोज की १५ महिला को इकट्ठा किया , उन्हें समूह योजना की जानकारी दी . पहले तो महिलाओ ने रूचि नही ली. पर बैंक अधिकारियो और मेरे समझाने पर वो सब समूह बनाने को राजी हो गई  !
            स्वयं सहायता समूह ने मुझे एक नया मंच दिया .  अध्यक्ष के रूप में बैंक से लोन लेकर अपने ही घर में एक मसाला मशीन लगाया , और समूह के नाम के अनुरूप  उन्नति की ओर हम लोग अग्रसर होने लगे  ! खेती के बाद हम सब बहने मिल कर मसाला चक्की में धनिया , मिर्च . गरम मसाला . पीस कर छोटा छोटा  पेकेट बना कर गाँव में बेचना शुरू किया  ! अच्छी गुणवत्ता और कम कीमत के कारण हमारा मसाला लोकप्रिय होते गया . पर इस व्यवसाय में लाभ कम था और हम सदस्य बहने ज्यादा .! काफी विचार के बाद हम ने पुनः बैंक से लोन लिया और  रेग पर कृषि का काम आरम्भ किया ! चूँकि समय पर लोन पटा देते थे इस लिए हर साल उस से और अधिक राशी का कर्ज लेकर हमने अधिक मात्र में भूमि रेग पर लिया और किसानी काम किया . परिणाम ये हुआ कि हमारा लाभ का प्रतिशत दिनों दिन बढ़ता गया ! महिलाओ को भी एक अच्छा अवसर मिला कि वो अपने परिवार के लिए कुछ आर्थिक मदद के काबिल बनने लगी !
         
     गाँव में इस अच्छे काम के कारण सभी मुझे जानने लगे . सन २००५ में मै  पंच बनी !  गाँव के हर कार्य में मैंने बढ़ चढ़ के हिस्सा लिया  ! महिलाओ के लिए संसद निधि से एक रंगमंच का निर्माण किया गया , इसके निर्माण में भी हुई धांधली का पैसा समूह के संयुक्त प्रयास से वापस जमा कराया गया  ! 

             अपनी शिक्षा आगे पूरी न हो पाने का गम आज भी मुझे सताता है ! इसलिए सन २००३ से हर साल ,गाँव के आठंवी , दसवी  और बारहवीं में प्रथम आने वाले बच्चो को मै एक प्रोत्साहन पुरुस्कार देती हूँ , जिस से बच्चो में पढाई के प्रति उत्त्साह बढे !  स्कुल कि गरीब लड़की के लिए कापी , पेन , पुस्तक का सहयोग भी समय समय पर करती हूँ  ! धार्मिक कामो में , यथाशक्ति मदद करती हूँ !     पुष्पा खेल खेल में बच्चो को शिक्षा ज्ञान सिखाती है , उन्हें कई अच्छी बाते भी सिखाती है  
             गाँव के लोगो से हमारी ३ घंटे तक चर्चा होते रही  ! पुष्पा के और भी कई चेहरे हमारे सामने आये ! वो २००४ से मितानिन का भी काम कर रही है !घर घर जाकर हाल चाल पूछना , मरीजो को वक्त पर दवाई देना पुष्पा के काम में ही नही बल्कि उसकी ख़ुशी में शामिल है !गर्भवती महिलाओ की देखभाल , आंगनबाड़ी में या स्वास्थ्य केंद्र में उसका पंजीयन ,मोतियाबिन्द के आपरेशन में मरीजो की मदद ..गरीब और लाचार बीमार के यहाँ दवाई पहुंचाना ,साधन सलाहकार के रूप में  नशबंदी करवाने में और अन्य  सलाह देना, जैसे बच्चो के बीच में  अंतर  क्यों जरुरी है , आदि महिला स्वास्थ्य की दिशा में कार्यरत ... पुष्पा साहू  ! इस सब कामो के लिए
उसे तीन बार पुरुस्कार भी मिला है ! सामाजिक कार्यो के कारण वो महिला मोर्चा की  सदस्य बनी , और बाद में १५ अगस्त २०११ को भारतवाहिनी की सदस्य बनी , आज वो अपना आईकार्ड बड़े गर्व से सभी को दिखाती है !
               आज पुष्पा का बड़ा लड़का स्काई ऑटो मोबाईल में मेनेजर है , छोटा लड़का पॉवर प्लांट्स में जूनियर इंजिनीयर  है , लड़की शिक्षिका है ! पुष्पा का मानना है कि महिलाओ का शिक्षित होना आवश्यक है , अगर महिलाये शिक्षित होंगी तो घर में ख़ुशी और विकास के नए आयाम रचने में आसानी होगी !
                 खुद चाहकर भी आगे न पढ़ पाई पुष्पा आज अपने साहस और मेहनत से अपनी एक पृथक पहिचान बना चुकी है ! आज भान्सोज में पुष्पा साहू को लोग उसके कामो के वजह से जानते है ! नारी सशक्तिकरण की एक मिसाल है , पुष्पा साहू.....................




       

रविवार, 8 अप्रैल 2012

देऊर पारा की रामेश्वरी


हम आपको ले चलते है, महानदी के उद्गम स्थान सिहावा। श्रृंगी ऋषि की धरा ... नगरी से मात्र 6 किलोमीटर की दुरी पर बसा है देऊरपारा ... बहुत छोटा सा गाँव... सरल से लोग .. जंगलो और पहाड़ो के बीच मनोरम सी प्रकृति की अनुपम सौगात है ये जमीन .... घुमने का शौक ले जाता है हमे सिहावा नगरी में ... महानदी के पावन उद्गम स्थल का अवलोकन करते हम अपने साथियों के साथ ....और वहां के कुछ स्थानीय लोगो से वार्ता कर रहे थे . वे सुना रहे थे कि यह स्थान भगवन परशुराम  जी से भी जुड़ा हुआ है .. उपर पहाड़ी में उनका भी मंदिर है... आदि आदि............।गाँव में घूमते हुए हम यहाँ के प्रसिद्ध  कर्णेश्वर  मंदिर पहुँचते है , वहां  हमारी मुलाकात होती है .. लाल रंग कि साड़ी पहने एक महिला से उससे बातचीत का सिलसिला आरम्भ होता है............

इसका नाम रामेश्वरी है, यहीं देऊर पारा में रहती है, घर के कार्य से समय निकाल कर समाज सेवा करती हैं और गाँव की महिलाओं को अधिकारों के प्रति जागरुक करने का प्रयास करती हैं। बातो का सिलसिला लगभग २ घंटे तक यूँ ही चलता रहा, इस बीच मंदिर का पुजारी, गाँव के अन्य बड़े बुजुर्ग, और काफी महिलाएं भी हमारे साथ आकर जुड़ते जाती है...हमारी जिज्ञासा बढ़ते जाती है, रामेश्वरी का व्यक्तित्व प्रभावशाली है और हम उस बीहड़ में रहने वाली रामेश्वरी साहू को और अधिक जानने का प्रयास करते  है.... जो तस्वीर उनकी हमारे सामने आई, वो इस प्रकार है। मात्र आठंवी तक पढ़ी रामेश्वरी गाँव में सन १९८८ से  प्रौढशिक्षा के माध्यम से अपने ग्रामवासी को शिक्षित करने का सतत प्रयास कर रही है, जिससे कई लोग जो पहले अंगूठा लगाते थे अब अपना नाम लिखना सीख गये है। १९९७ में उसने राजनीति के क्षेत्र में भी कदम रखा. जब महिलाओ के लिए कोई आरक्षण नही था, वो तीन पंचायतो छिपलीपारा, बिद्गुड़ी और भडसिवाना से जनपद सदस्य के रूप पहला चुनाव जीती। सहकारी समिति का चुनाव भी जीतकर वो समिति की उपाध्यक्षा बनी।

समाजसेवा के क्षेत्र में उसके अद्भुत रूप से हमारा परिचय हुआ, वह अनेक योजनाओ के माध्यम से अपने और आसपास के गांवो की महिलाओ और लड़कियों को सिलाई का प्रशिक्षण देती है और उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही है ! अनेक शासकीय योजनाओ का लाभ अपने ग्रामवासी को मिले इस लिए खादी ग्रामोद्योग के सहयोग से देवपुर में ३ माह का सिलाई प्रशिक्षण भी दिया, साथ ही गाँव भीतररास की अत्यंत ही गरीब महिलाओ को निःशुल्क प्रशिक्षण अपनी ओर से भी दिया, जिसका सुखद परिणाम ये है कि वो आज इसे अपने व्यवसाय के रूप में अपनाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई है  !

२००१ में देउरपारा के  राजकुमार भट्ट कि पत्नी  धन्वन्तरी भट्ट जचकी के लिए धमतरी के बठेना अस्पताल में भर्ती थी ! ईलाज का बिल बना १५००० रुपये , अर्थाभाव के कारण  पैसा चुकाने में असमर्थ होने से उसे अस्पताल वाले डिस्चार्ज नही कर रहे थे। तब रामेश्वरी ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई, अख़बार और मिडिया की सहायता से पीड़ित के सहयोग की गुहार लगाई और उस निसहाय महिला के सहयोग के लिए आगे आकर स्वयं के पास से ३००० रूपये अस्पताल में जमा कर के जज्चा बच्चा को अस्पताल से डिस्चार्ज करवाने का पुण्य काम किया, अस्पताल प्रबंधन ने अपनी इस गलती के लिए माफ़ी भी मांगी ..मानवता का एक सजग चेहरा हमारे सामने आया  !

देउरपारा के सुग्रीव की पत्नी की दोनों किडनी ख़राब हो गई थी। उसे लोगो से सहयोग लेकर शासकीय अस्पताल में दाखिल कराया। आर्थिक सहयोग एकत्र कर उसे बचाने का भरपूर प्रयास किया। उसे आज भी इस बात की पीड़ा है कि वो उस महिला को बचा नही पाई, उसकी बात निकलते ही आँखों से नमी छलक जाती है। पर उसके निधन के बाद भी जब उसके अंतिम संस्कार के लिए उसके परिवार वाले के पास पैसा नही होता तो रामेश्वरी लोगो से चंदा कर के , अपना भी सहयोग करती है , और  उस मृतात्मा का अंतिम संस्कार सम्पन्न कराती है ....... गांववाले बताते है कि किसी का कोर्ट कचहरी का काम हो, आपसी विवाद हो, प्रत्येक काम में रामेश्वरी आगे आकर लोगो का मदद करती है। रामेश्वरी गाँव में स्वयं सहायता समूह के माध्यम से महिलाओ को शसक्त करने का प्रयास करती है और अपने आत्मीय व्यवहार से लोगो के दिलो में बस गई है।

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

देहात की नारी की आवाज

                 "देहात की नारी" ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आज हम इस  ब्लॉग पर  प्रकाशन प्रारंभ करें , इसके पूर्व कुछ परिचय नवीन ब्लॉग का देना चाहेंगे ........


                  हमारा देश सांस्कृतिक सम्पदा से परिपूर्ण है  ! शहरी क्षेत्रो में जहाँ एक ओर प्रचार के समग्र संसाधन मौजूद है , जहाँ समाजसेवा को एक फैशन के तौर पर प्रदर्शित किया जाता है , किसी एक स्थान से पौधे उखाड़ कर दूसरी जगह रोप दिया ,और छा गये मिडिया में ...बन गई  हेड लाइन ......अमुक महिला के द्वारा वृक्षारोपण किया गया ..!ऊँची हील की सेंडिल ..होंठो में गहरी लिपिस्टिक , महँगी साड़ियाँ, और वित्तीय साधनों से पूर्ण कई समाज सेवी संगठन की तस्वीरें आपने इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मिडिया में अक्सर देखी होंगी , पर समाजसेवा का जो रूप मैंने गाँव में देखा है , जो जज्बा देहात की नारी में देखा है, मेरा रचना धर्म ऐसी ही कुछ खास नारियों से अपने साहित्य जगत के मित्रो से परिचय करवाने के उद्देश्य से मैंने इस नवीन ब्लाग "देहात का नारी " का आज लोकार्पण करने जा रही हूँ... मित्रो से आग्रह है कि बहुत सामान्य सी दिखने वाली , बेहद घरेलु किस्म कि इन देहात कि नारी से मिलने , और उसमे निहित संकेत को अपना स्नेह जरुर प्रदान करेंगे।


                   मेरा ये मतलब कतई नही है कि शहरी महिलाएं समाज सेवा मात्र दिखावा के लिए करती है, फ़िर भी अधिकतर प्रगतिशील कहलाने वाली दिखावे से परे नहीं है। अंग्रेजी बोल कर ग्रामीण महिलाओं के साथ फ़ोटो खिंचा कर अपना उल्लू सीधा कर नारी जागरण की दुकान चलाने वाली तथाकथित नारियों की भी कोई कमी नहीं है। मेरा किसी से कोई विरोध नही है, पर मेरी दृष्टि में साधन सपन्नता का ढोंग करने वाली महान नारियों की बजाए, महान वो देहात की वो महिला है , जो सीमित साधनों में रह कर भी अपने आवश्यकताओ से  बचाकर कुछ करने का प्रयास कर रही है ! अल्पक्षर है , गरीब है , दिन दुनिया के रस्मोरिवाज से अपरिचित है , पर मेहनती है , आत्मनिर्भर है , सरल है , सहज है , और बनावटीपन से कोसो दूर है , मेरी लेखनी सलाम करती है उन महान नारियो को , ग्रामो में बसती है  ! समय - समय पर इस ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास होगा कि उन नारियो से आपका रूबरू करा सकू ..


             आज बस एक संक्षिप्त सा परिचय इस ब्लॉग का ....