शनिवार, 9 जून 2012

देहात की नारी - ५ -   भंवरपुर की बसंती देवांगन ...

भंवरपुर , उड़ीसा से लगा हुवा एक छोटा सा गाँव ,, बारनवापारा की सुंदर भूमि से कलकत्ता राष्ट्रीय मार्ग में आगे बढने पर बसना के आगे से लगभग २८ किलोमीटर बाये ओर जाने से प्रकृति की सुंदर भेंट ,! रायपुर से लगभग १४५ किलोमीटर बसना .. राह में छोटी  छोटी पहाड़ियां .. पहाड़ी में शिवालय .....सड़क के दोनों ओर खुबसुरत जंगल ............सुनसान वीराने दौड़ती हुई राज मार्ग की बड़ी बढ़ी गाड़ियाँ ........राह में दो हादसे की तस्वीर ... जीवन सफ़र में कभी भी कुछ भी अनायास घटित हो सकता है ..........हम बढ़ते जा रहे थे ... उस गाँव को देखने जहाँ हर घर में बुनकर का काम होता है , हर महिला और पुरुष जहाँ अपने परम्परगत व्यवसाय को आज भी जीवित रखने में कामयाब है ! कहीं बुनकर समिति की सफ़ेद चादर बन रही है , कही सलवार सूट, दुपट्टा तैयार किया जा रहा है , कही गमछा , कहीं  कमीज का कपडा ........हर कपडे में उड़ीसा प्रिंट की झलक साफ दृष्टिगत हो जाती है !  लो पहुँच गये हम भंवरपुर.......! ये है यहाँ का कोआपरेटिव बैंक .. जहाँ से बुनकरों को अपने व्यवसाय के लिए वित्तीय सुविधा भी मिलती है !  आगे चले हम ढूंढने इस गाँव की किसी खास महिला से मिलने .........कदम रुक गये हमारे .. पास में खेलते छोटे छोटे २ नन्हे से बच्चे ,, बाहर चारपाई पर बीडी पीता बुजुर्ग स्वसुर ......पास में सुपा में चांवल साफ करती हुई सास ......और इनकी बहु "बसंती देवांगन " चूल्हे के बाजु में अपना बुनकर के मशीन में फटाफट हाथ चला रही है ,....२०-२५ मिनट हम एकटक उनके काम को ही देखते रहे ......गजब की फुर्ती थी इन कोमल हाथो में ........१/२ मीटर कपडा बुन गया देखते देखते ............
जब उस का ध्यान हमारी ओर गया तो कुछ संकोच से वो उठ खड़ी हो गई ..उनके गाँव के एक सज्जन हमारे साथ थे , उन्होंने हमारा उनका परिचय कराया ..........आत्मिक आवभगत से चाय पानी वो लाती रही , हमारे मना करने के बाद भी .........हम ने उसे बगल में बैठाया ......हमारी उत्सुकता ने उनसे प्रश्न करना शुरू कर दिया

बसंती मात्र छटवी पास है , वो कहती है कि उनके गावो में पढाई को जादा महत्व नही दिया जाता है !  २० साल में उसका विवाह भंवरपुर के मंगल प्रसाद से हो गई , २ बच्चे है , ..बसंती की उम्र पूछने पर वो अटकल लगा कर कहती है कि मै शायद ३० साल की हो गई हूँ  ..! उनकी मासूमियत हमे बहुत पसंद आई .......बात करते करते वो धुल से सने बच्चे को ले जाकर मुंह धुलाती है .. गमछे से अंगोछ  कर पावडर लगाती  है , कंघी करती है ....फिर उस के माथे पर एक काजल का टिका लगा कर चूम लेती है ...........बड़े धीरे से बच्चे के कान में फुसफुसाकर कुछ कहती है .....बच्ची शर्माते हुए हमे " नमस्ते मेडम जी " कहती है , और वहां से भाग जाती है .............
बसंती का ये रूप हमे बहुत भाता है .......एक माँ जो अपने बच्चे को सुंदर बनती है , दुनिया की नजर से बचाने, काजल का टिका लगाती है , फिर कानो में सीख दे कर संस्कारित बनाती है ,............ एक माँ का वात्सल्यमयी  रूप की झलक बसंती के सौंदर्य को और बढा देती है ..!


         हम पुनः बसंती से मुखातिब होते है ..उस से पूछते है कि ये काम कब और कैसे शुरू किया ....वो हंसकर कहती है कि शादी के पहले से ही मात्र १८ साल की उम्र में वो कपडे बुनना सीख गई थी ,, शादी के बाद ससुराल आकर वो इसे पूरी जिम्मेदारी के साथ कर रही है .!


कुछ प्रश्न बसंती से -:
प्रश्न - एक दिन में कितने कपडे बना लेती हो ?
जवाब - लगभग १० से १५ मीटर .
प्रश्न- एक मीटर बनाने से तुम्हे कितना मुनाफा होता है ?
वो हसकर बताती है , धागा सूत, रंग सब बुनकर समिति वाले देते है , एक मीटर कपडा बुनने का उसे २० रूपया मिल जाता है .. कुल मिलाकर २०० से ढाई सौ रूपये मिल जाते है रोज ,,,
प्रश्न- क्या पति भी उसके साथ बुनाई का काम करता है ?
नही वो बढाई का काम ठेका में करवाता है .बड़े चाव से लकड़ी की आलमारी , दीवान और पलंग हमे दिखाती है , साथ में बताती है कि जंगल बहुत है , आसानी से लकड़ी उपलब्ध  हो जाती है और इसमें मुनाफा भी इतना हो जाता है कि गृहस्थी का गुजारा हो जाता है !
प्रश्न- तो तुम क्यों कर रही हो ये काम ?
 - ये हमारा पुश्तैनी कला है , हम देवांगन है , बुनकर जाति के लोग , हम अगर अपनी परंपरा को जीवित नही रखेंगे तो आने वाले समय में इस काम को कौन जान पायेगा , या समझ पायेगा , हमारे साथ ही ये कला भी ख़तम हो जाएगी ,, अपनी संस्कृति की रक्षा करते हुए हम चार पैसा कमाकर अपने परिवार की मदद कर रहे है तो हमे इस में ख़ुशी भी मिलती है ! और आगे जाकर बच्चों को पढ़ना है अच्छे स्कुल में , उन्हें बाबु बनाना है , अच्छे कपडे ....अच्छी सी  नौकरी ... एक अच्छी सी जिन्दगी ........बहुत से सपने है जो एक की कमी से पुरे नही हो सकते ..........काम का काम और चार पैसे की आमदनी ........ ठीक है न मेडम...........
हम अवाक से देखते रह गये .. कौन कहता है कि छठवी पास महिला की सोच ऊँची नही हो सकती ...............
सलाम........ मेरी बहना.......... घर के काम काज को बखूबी ने निपटा कर एक उत्तम सोच रखने वाली भंवरपुर की इस नायिका बसंती देवांगन को ...............